म्यूचुअल फंड दुनियाभर में निवेश के पसंदीदा विकल्प बन गए हैं. इस समय बड़ी संख्या में स्कीम मौजूद हैं, ऐसे में निवेश की शुरुआत करने से पहले निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड की बुनियादी शब्दावली के साथ-साथ यह समझना भी अहम है कि म्यूचुअल फंड किस तरह से काम करता है.
म्यूचुअल फंड्स क्या हैं?
म्यूचुअल फंड निवेश का एक इंस्ट्रुमेंट है जो साझा निवेश लक्ष्य के साथ निवेशकों से पैसे इकट्ठा करता है और इक्विटी, बॉन्ड्स, मनी मार्केट इंस्ट्रुमेंट्स और अन्य सिक्योरिटीज में निवेश करता है.
म्यूचुअल फंड्स के काम करने का तरीका क्या है?
म्यूचुअल फंड्स व्यक्तिगत निवेशकों का पैसा जमा करते हैं और स्कीम के निवेश लक्ष्य के हिसाब से विभिन्न एसेट क्लास का एक विविध पोर्टफोलियो तैयार करते हैं. जब आप किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करते हैं तो आपको यूनिट्स अलॉट किए जाते हैं जो किसी भी कंपनी का शेयर खरीदने जैसा होता है. एक सिंगल यूनिट की कीमत को नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) कहा जाता है जो फंड द्वारा होल्ड की जाने वाली सभी सिक्योरिटीज के कम्बाइंड मार्केट वैल्यू, सभी तरह के नेट खर्च, कुल आउटस्टैंडिंग यूनिट्स की संख्या द्वारा विभाजित वैल्यू को दिखाता है. हर ट्रेडिंग दिन के आखिर में दैनिक आधार पर एनएवी को अपडेट किया जाता है. म्यूचुअल फंड स्कीम के यूनिटहोल्डर्स लाभांश और पूंजीगत लाभ के रूप में रिटर्न प्राप्त करते हैं.
म्यूचुअल फंड के प्रकार
सेबी द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के मुताबिक, म्यूचुअल फंड्स को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
इक्विटी स्कीम:
इस तरह की म्यूचुअल फंड स्कीम्स में कुल एसेट्स में से कम-से-कम 65 फीसदी का निवेश इक्विटी और इक्विटी से जुड़े इंस्ट्रुमेंट्स में होता है. इक्विटी फंड्स ऐसे निवेशकों के लिए उपयुक्त विकल्प होता है जो पोर्टफोलियो में इक्विटी को शामिल करना चाहते हैं लेकिन कैपिटल मार्केट में उन्हें महारत हासिल नहीं होती है. कई स्कीम उपलब्ध होने के कारण अधिकतर इंवेस्टर्स के लिए इक्विटी फंड निवेश के व्यवहारिक विकल्प हैं. - इक्विटी म्यूचुअल फंड को लार्ज-कैप, मिड-कैप और स्मॉल कैप फंड में वर्गीकृत किया जा सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि फंड ने जिन स्टॉक्स में मुख्य रूप से निवेश किया है उनका मार्केट कैपिटलाइजेशन कितना है. मल्टी-कैप फंड्स विभिन्न मार्केट कैपिलाइजेशन वाली कंपनियों में निवेश करते हैं. कंपनी के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों को कंपनी के शेयर के मौजूदा भाव से गुणा करके मार्केट कैपिटलाइजेशन की गणना की जाती है.
- डिविडेंड यील्ड फंड्स अधिक लाभांश देने वाली कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं.
- इक्विटी स्कीम्स को अंतर्निहित निवेश रणनीति के आधार पर वैल्यू या कॉन्ट्रा फंड के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है.
- सेक्टोरल फंड्स हेल्थकेयर, रियल एस्टेट जैसे खास सेक्टर्स में ऑपरेट करने वाली कंपनियों में ही निवेश करते हैं.
- इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ईएलएसएस) टैक्स बेनिफिट्स देने वाले म्यूचुअल फंड होते हैं लेकिन इनका लॉक-इन पीरियड तीन साल का होता है.
डेट स्कीम:
ये ऐसी स्कीम हैं जो कॉरपोरेट और सरकारी बॉन्ड्स जैसे निश्चित आय वाले इंस्ट्रुमेंट्स और अन्य डेट सिक्योरिटीज में निवेश करती हैं. डेट फंड्स ऐसे निवेशकों के लिए निवेश का उपयुक्त विकल्प होता है जो स्थिर रिटर्न चाहते हैं. - लिक्विड और मनी मार्केट फंड्स बहुत कम अवधि के लिए डेट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं इसलिए ये काफी अधिक लिक्विडिटी प्रदान करते हैं.
- डेट स्कीम को अंतर्निहित डेट सिक्योरिटीज की मैकाले अवधि के आधार पर और वर्गीकृत किया जा सकता है. किसी बॉन्ड के मूलधन और ब्याज भुगतान दोनों को पूरी तरह से रिकवर करने में लगने वाले औसत समय को मैकाले अवधि कहते हैं. डेट फंड को अल्ट्रा-शॉर्ड ड्युरेशन फंड (तीन से छह महीने की मैकाले अवधि के साथ) से लेकर लॉन्ग ड्युरेशन फंड (सात साल से ज्यादा की मैकाले अवधि के साथ) तक कई श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है.
- डेट स्कीम को अंतर्निहित सिक्योरिटी की क्रेडिट रेटिंग के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कॉरपोरेट बॉन्ड फंड (जो सबसे ज्यादा रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करते हैं) और क्रेडिट रिस्क फंड (जो सर्वोच्च से कम रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करता है).
- गिल्ट फंड मुख्य रूप से सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करता है इसलिए लोन के भुगतान या ब्याज के भुगतान में चूक का कोई जोखिम नहीं होता है.
- फ्लोटिंग रेट फंड्स मुख्य रूप से फ्लोटिंग रेट डेट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं जहां बॉन्ड होल्डर्स को भुगतान की जाने वाली ब्याज दर में ब्याज दर से जुड़े परिदृश्य में बदलाव होने पर परिवर्तन देखने को मिलता है.
हाइब्रिड स्कीम:
ये म्यूचुअल फंड स्कीम इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करते हैं जिससे निवेशकों को दोनों का फायदा मिल जाता है. इक्विटी में निवेश से पोर्टफोलियो के लिए जरूरी ग्रोथ मिल जाती है जबकि डेट में निवेश से गिरावट से जुड़े किसी भी तरह के जोखिम से प्रोटेक्शन मिलती है. - इसे कंजर्वेटिव हाइब्रिड से लेकर एग्रेसिव हाइब्रिड फंड तक में वर्गीकृत किया जा सकता है. कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड में मुख्य रूप से डेट में निवेश किया जाता है जबकि एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स में मुख्य रूप से इक्विटी में निवेश होता है.
- डायनेमिक एसेट अलोकेशन फंड मार्केट को लेकर फंड मैनेजर के रुख के अनुसार इक्विटी और डेट में अपने अलोकेशन में बदलाव करता है.
- आर्बिट्राज फंड कैश एवं फ्यूचर्स मार्केट के बीच के कीमतों के अंतर का फायदा उठाकर काम करता है.
सॉल्यूशन ओरिएंटेड स्कीम्स:
ये ऐसी स्कीम होती हैं जो बच्चों की शिक्षा के लिए फंड इकट्ठा करने और रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए लंबी अवधि तक निवेश करने वालों की जरूरतों को पूरा करते हैं. ये म्यूचुअल फंड स्कीम की नई कैटेगरी है. पहले इन्हें इक्विटी या बैलेंस्ड स्कीम माना जाता था. इनकी लॉक-इन अवधि पांच साल की होती है जो पहले तीन साल हुआ करती थी लेकिन निवेशक लंबे समय तक निवेश जारी रखें, इसके लिए इसे बढ़ाया गया था. अन्य स्कीम:
इस कैटेगरी में इंडेक्स फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) और फंड ऑफ फंड्स (FoFs) आते हैं. इंडेक्स और ईटीएफ पैसिव तरीके से मैनेज किए जाने वाले म्यूचल फंड हैं जो इंडेक्स के अनुपात में शेयरों को खरीदकर बेंचमार्क इंडेक्स के प्रदर्शन को दोहराने की ओर देखते हैं. फंड ऑफ फंड्स सीधे एसेट क्लास में निवेश के बजाय म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते हैं.
मिड कैप फंड्स ऐसे निवेशकों के लिए उपयुक्त होते हैं जो पूंजी में वृद्धि के साथ-साथ धन सृजन करना चाहते हैं और साथ-ही-साथ उच्च वृद्धि हासिल करने की संभावना वाली कंपनियों में निवेश से संबंधित अनुमानित जोखिम को लेकर भी तैयार होते हैं.
म्यूचुअल फंड्स में निवेश के फायदे
कई कारणों से म्यूचुअल फंड निवेशकों का पसंदीदा विकल्प रहा है.
विविधीकरण:
विभिन्न एसेट क्लास और कई तरह की सिक्योरिटीज में निवेश के जरिए म्यूचुअल फंड्स निवेशकों को विविधीकरण से जुड़ा फायदा देते हैं. अगर कोई एक सिक्योरिटी अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है तो पोर्टफोलियो पर किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा.पेशेवर प्रबंधन:
म्यूचुअल फंड्स को पेशेवर फंड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किया जाता है जिनके पास जरूरी वित्तीय विशेषज्ञता होती है और जो निवश से जुड़े निर्णय करने से पहले गहराई से शोध और विश्लेषण करते हैं. लिक्विडिटी:
आप अपने यूनिट्स को रिडीम कर सकते हैं और तीन से पांच कामकाजी दिनों में म्यूचुअल फंड से अपना फंड वापस पा सकते हैं.बहुत अधिक विनियमित:
सभी म्यूचुअल फंड्स को परिचालन शुरू करने से पहले सेबी के समक्ष खुद को रजिस्टर कराना होता है. उन्हें निवेशकों को सभी तरह की जानकारी देनी होती है - प्रतिदिन एनएवी, पूरा पोर्टफोलियो, खर्च इत्यादि. व्यक्तिगत निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री बहुत अधिक विनयमित होते हैं. अफोर्डेबिलिटी:
म्यूचुअल फंड्स कई तरह की सिक्योरिटीज और एसेट क्लास में निवेश का एक किफायती प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं. निवेशक एक मामूली शुल्क के भुगतान के साथ प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट और विविधीकरण का फायदा उठा सकते हैं.
निवेशकों को जागरूक करने की एडलवाइज म्यूचुअल फंड की पहल.
सभी म्यूचुअल फंड निवेशकों को एक बार केवाईसी प्रोसेस को पूरा करना होता है. निवेशकों को केवल रजिस्टर्ड म्यूचुअल फंड (आरएमएफ) के साथ डील करनी चाहिए. केवाईसी, आरएमएफ से जुड़ी अधिक जानकारी और किसी भी तरह की शिकायत दर्ज कराने का प्रोसेस जानने के लिए विजिट करेंः
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म्यूचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. कृपया निवेश करने से पहले सभी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ें.